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विश्वास की जमीं पर
अपनत्व की नमी पा
पनपता है प्यार
धीरे धीरे
सहअस्तित्व की
स्वीकार्यता लिये हुए
खिलते हैं पुष्प
मकरंद से भरे हुए
बिखर जाती है सुगंध
यहां-वहां हर जगह
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