मर्जी's image
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मैं, बचा लेता
कटते जंगल
सूखती नदी 
दरकते पहाड़
सिमटती घाटी
मुरझाते फूल
चिड़िया के नीड़
बसंती बयार 
गुम होती गौरैया 
हृदय में प्रेम 
होठों पर गीत
युध्द के उद्घोष
प्रेमियों के बिछोह
भूखे की रोटी
समंदर में मोती
मनुष्य में मानवता 
नीलाभ प्रेमरंग वाली 
स्त्री की चुनरी
प्रभु ने कहा 
गर चलती मेरी मर्जी
बचा लेता 

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