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तुमसे बिछड़ कर भी
जिद्दी प्रेम संजोए बैठा है
बीते दिनो के चमकीले टुकड़ों को
अंतरतम मे
हो सके तो
तुम रख जाना
साथ बिताए पल
वो बातें थोड़ी सी हंसी के संग
प्यार पगे उलाहने
थोड़ी सी नाराजगी के संग
सुनो
किसी पर्वत की चोटी से टकरा कर
लौट आती है मुझमें ही मेरी आवाज
पर ना जाने क्यों
मेरे मन में गूंजती है अब भी
तेरी मेरी हर बात
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