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सृजन कर्ता–  *डॉ अरुण कुमार शास्त्री*

विषय-   *पक्षपात*

शीर्षक-   *सम्मति* 

विधा-   अतुकांत, छंद मुक्त काव्य


पक्षपात करना नहीं, 

ये अवगुण की खान ।

ज्ञानी जन ये बोलते,

सच तू इसको मान ।

पक्षपात की पोटली,

भरी पाप से होय । 

जिस दिन फूटी ये समझ, 

उस दिन प्रलय ही होय ।

ज्ञान जगत के मान का ,

अति आवश्यक मान ।

बिना ज्ञान सब सून है ,

ऐसा निश्चित जान ।

करते – करते जग मुया , <

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