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सृजन कर्ता–  *डॉ अरुण कुमार शास्त्री*

विषय-   *पक्षपात*

शीर्षक-   *सम्मति* 

विधा-   अतुकांत, छंद मुक्त काव्य


पक्षपात करना नहीं, 

ये अवगुण की खान ।

ज्ञानी जन ये बोलते,

सच तू इसको मान ।

पक्षपात की पोटली,

भरी पाप से होय । 

जिस दिन फूटी ये समझ, 

उस दिन प्रलय ही होय ।

ज्ञान जगत के मान का ,

अति आवश्यक मान ।

बिना ज्ञान सब सून है ,

ऐसा निश्चित जान ।

करते – करते जग मुया ,

सन्तुष्टि कब होय ?

संतोषी सबसे सुखी , 

ऐसा बीज ही बोय ।

विधि विधान संज्ञान लें ,

ज्ञान वान के हेत ।

चूल्हा चौका छोड़ के , 

करते सबकी नेक । 

धरा व्योम और वृक्ष से सीख लें ,

निष्पक्ष प्रेम व्यवहार ।

सबको मिलता अन्न जल ,

बिन ऊँच नीच प्रतिकार ।

बेटा बेटी एक हैं ,

संतति मनुज की अग्रणी ।

वंश बेल इनसे बढ़े ,

इनका कर गुणगान । 

पक्षपात से हो रहा,

चिंता ग्रसित समाज ।

समदर्शी यदि आप हों ,

मिलता सकल विकास ।  

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