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वनवास

 

बाहों में समुंदर हो कर भी 

रूह मेरी प्यासी रह जाती है

सदियों से खारापन मिटाने को

समर्पण करती आई खुद को  

 

क्यूँ मैं उस में समर्पण कर के  

अस्तित्व अपना खो दूँ !

खुद का वजूद बचाने…

रूह को तृप्त करने… 

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