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बूँदों की छुवन
(कविता)
बारिश के बूँदों से
खिल जाता है चमन
रोम-रोम में सिहरन
विचलित होता है ये मन।
झूम उठती हैं कलियाँ
महक उठता है मधुवन
भावुक हो जाती है धरा
जैसे हो कोई विरहन।
संवर जाती है दुनिया
जैसे सेज पर दुल्हन
अनुभूति प्रेम की दे जाती हैं
ये बूंदों की छुवन।
-दिलीप कुमार 'बाग़ी'
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