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'बेटी'
कभी फूलमाला, कभी अग्निज्वाला
कभी घर की लक्ष्मी कहाती हैं बेटी।
कभी रणचण्डी, कभी झाँसी वाली
कभी रण में तेगा चलाती हैं बेटी।
कभी घर की मर्यादा ऊँचा उठाती
कभी बोझी नैय्या डुबाती हैं बेटी।
कभी बहन तो कभी माँ और पत्नी
हर रूप में श्रेष्ठ मानी जाती हैं बेटी।
बेटों के लोभियों से कोई तो पूछे
कोंख म
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