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जब कभी अलाव
के पास बैठता हूँ,
अनायास ही याद आता है
एक बारहमासी अलाव
मेरे भीतर भी जलता है,
जलावन से आती ,
चट-चट की ध्वनि
प्रतिनिधित्व करती है
मेरी टूटती आस का,
अंगारों की सुर्खियों में
परिलक्षित होता...स्मृतियों का ताप
और शेष काली भुरभुरी राख
प्रतीक है मेरे उस अवसाद का
जिसे मैं बारह मास ढोता हूँ ...
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