
उम्र के इस पड़ाव पर ,
आज हम तुम अकेले हैं ।
रोज की झिक झिक,
छोटी छोटी बातों पर किट किट,
ऐसे ही साथ में
हमने सालों बिताए।
उम्र कट गयी एक दूसरे के साथ
न हमें फुर्सत,
न होती अपनी बात,
न तो कभी पूछा मेरा हाल चाल ,
न कभी हमे आया इसका खयाल।
जिम्मेदारियों का बोझ था,
हममे तुममे मिलना भी कहाँ हर रोज था,
साथ रह कर भी अजनबियों से वक़्त बिताया हमने,
लाखों मुसीबतों में हमें कहाँ अपना होश था?
पर अब मैं मुक्त हूँ।
सभी जिम्मेदारियों से.....
सभी तीमारदारियों से....
अब जो वक़्त है,
बस तुम्हारा है।
अब मैं बस तुमको देखना चाहता हूँ....
तुमको
सुनना चाहता हूँ...
और तुमको ही महसूस करना चाहता हूँ ....
तुम्हारे हर दर्द का मलहम बनना चाहता हूँ...
तुम्हारी सारी शिकायतें सुनना चाहता हूँ।
अब किसी बात पर नही होगी कोई किट किट...
न ही कोई झिक झिक।
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