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कभी बैठों मेरे पास तुम्हे बताऊं मैं

दिल पर लगी चोटे तुम्हे गिनाऊँ मैं

चल सकोगे कँहा तक साथ मेरे

तुम कहो तो यही ठहर जाऊँ मैं

जिसे देखो वो अलग राह दिखाता है

समझ नही आता किस तरफ जाऊँ मैं

इस शहर में हर कोई उलझा हुआ है

बताओ किस तरह खुद को सुलझाऊँ मैं

खुद में ही देखे है हजारो ऐब मैंने

सोचती हूँ किसी दिन सुधर जाऊँ मैं

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