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दूर तक ख्वाबों में फैली रौशनी को देखिये
और वो कहती है केवल इक उसी को देखिये
क्या कभी देखा है दुनिया में किसी शैतान को
हो सके इस मरतबा बस आदमी को देखिये
बेख़ुदी में नाम उनका ले रहा हूँ बार बार
होश कितना है हमारी बेख़ुदी को देखिये
साथ मेरे था तो मुझसे आशनाई खूब थी
इन दिनों उस आशना की बे-रुख़ी को देखिये
एक चेहरा देखना था सो कभी देखा नहीं
लाख चेहरे हैं मगर अब क्या किसी को देखिये
उनकी दुनिया में 'विकल' हम देखते हैं चार सू
वो हमें समझा रहे हैं, चाँदनी को देखिये
✍️दीपक विकल
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