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पैरों को जकड़ रखा है जंजीरों ने आशाओं की भावनाओं की,
मन करता है इन्हें तोड़ जाऊं,
खुद के ही ख्वाब कुचल रहा हूं,जिम्मेदारियों की गंठड़ीयां ढोते -ढोते,
मन करता है पटककर इन्हें कहीं दूर दौड़ जाऊं,
मां की बिलखती आंखें फिर करे पीछा,आए सामने मैं जहाँ जाऊं,
ए मेरी दर्द-ए-जिंदगी, ए मेरे दर्द-ए-दिल मैं क्या करूं, कहां जाऊं,
घर की तरफ जाते ये कदम मोड़ लाऊं मैं,ये रिश्ते नाते तोड़ जाऊं मैं,
कुछ तो अपने ही मक्कार निकले और जो जां से बढ़कर यार थे वो भी गद्दार निकले,
मन करता है की बस अब ये दुनिया छोड़ जाऊं मैं,
शराब के नशे में बकता मेरा बाप,बिना किसी गलती के रोती मेरी मां,बाप से भिड़ जाऊं या माँ को चुप कराऊं,
ए मेरी दर्द-ए-जिंदगी, ए मेरे दर्द-ए-दिल मैं क्या करूं, कहां जाऊं,
माँं के आंसू देख खुद रोऊं या अपने आंसुओ को पीकर उसे चुप कराऊं,
माँ से चुप रहने की कला सीख जाऊं या चीख चीखकर गजलें गाऊं,
रोने का मन है टूट रहा तन है, माँ को बता सकता नहीं और ये यादें भी भुला सकता नहीं,
कब तक पीऊं आंसुओं को, धोखों को निगलू,ठोकरों को खाऊं,
ए मेरी दर्द-ए-जिंदगी, ए मेरे दर्द-ए-दिल मैं क्या करूं, कहां जाऊं,
चैन की नींद भले ही ना आती,सुबह तो कम से कम अच्छे से गुजर जाती,
कितना अच्छा होता घर बिन पैसे के चलता अगर,
छोड़ के कलम थाम लेता कस्सी मैं,खेती में कुछ बचता अगर,
लेकिन बाप का नशा रुकता नही है,घर बिन पैसे के चलता नहीं है,
पैसे से बनता है पैसा,फकीर हूं,क्या करू,पैसे केसे कमाऊ,
ए मेरी दर्द-ए-जिंदगी, ए मेरे दर्द-ए-दिल मैं क्या करूं, कहां जाऊं,
दिल है मेरे पास भी मगर किसीसे किस मुंह से लगाऊं,
जानबूझकर किसी और की जिंदगी खुद की तरह बर्बाद ना कर पाऊं,
मुश्किल से होती है 6 घण्टे की नींद नसीब ज़ालिम,भला मैं इश्क किसिसे कैसे लड़ाऊं,
ए मेरी दर्द-ए-जिंदगी, ए मेरे दर्द-ए-दिल मैं क्या करूं, कहां जाऊं,
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