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माँ यूंही कह देती है
और
मैं भी यूंही समझ जाती हूं
मां कहती है
सब छोड़ दे
मैं..... को छोड़ दे
मैं को छोड़ दो
हर सवाल छोड़ दे
हर तकरार छोड़ दे
बस मिट्टी हो जा
मिट्टी से महान कुछ भी नहीं
मिट्टी में ही गुल बूटे उगते हैं
फूल पत्तियां महकती है
मिट्टी में पैदा होकर
आखिर मिट्टी में मिल जाता है सब
मिट्टी हो जा सकूं मिलेगा
न दुख होगा
न चिंता
बस हर तरफ सकूं होगा
मैं....
को छोड़ दे
शून्य हो जा
शून्य में सिमट जाता है
ब्रह्मांड सारा
शून्य से शुरू
शून्य पर खत्म
जीवन चक्र ये प्यारा
न उदास हो
न मलाल कर किसी बात का
न ख़याल कर
हौसलों को परवाज़ दो
हुनर को नया आगाज़ दो
तुम मैं को छोड़ दो
बस मिट्टी हो जा
मां सच कहती है
मिट्टी से महान कोई नहीं होता
मिट्टी से महान कुछ नहीं होता
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