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कई बार तुमको देखा है,
पर आँख नहीं भरती है
रूपसुधा की हर बूंद पी है
पर ये तृष्णा नहीं मरती है।
रूप रंग की अरुणाई से
आलोकित है मेरा कण कण
उफ्फ़ ये
मिलन सांझ नही ढलती है।
अलि के चुम्बन से तो
कलि का बढ़ता यौवन है
पर हाय!
अधूरी प्यास कँहा बुझती है।
चौदस में चढ़ती रूप कलाएं
तो अमावस में ढल जाती हैं
पर अथाह !
प्रेम सलिला सदानीरा बहती है
#दिलीप
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