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कई बार तुमको देखा है,
पर आँख नहीं भरती है
रूपसुधा की हर बूंद पी है
पर ये तृष्णा नहीं मरती है।
रूप रंग की अरुणाई से
आलोकित है मेरा कण कण
उफ्फ़ ये
मिलन सांझ नही ढलती है
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