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सोचा नहीं था कभी ऐसा
कि इक दिन जाना पड़ेगा
उस सचमुच के जीवंत स्वर्ग में
एक छोटा सा बक्सा और
कुछ जरूरत के सामान लेकर।
जब वहाँ पहुँचे तो...
उदास मन, हतास चेहरा, बैचेनी, अकेलापन,
घर की यादें, गाँव वाले दोस्तों की यादें
ये सब जहन में था।
कुछ समय बाद...
माहौल में ढ़लते गए, नए दोस्त बनते गए
अकेलापन दूर होने लगा पर फिर भी
एक चीज़ हमेशा साथ थी... यादें
घर वालों की, बचपन के यारों की
परिवार की तथा घर के आंगन की।
वो पीटी सर कि विशिल की आवाज
उस समय कानों को ख़राब लगती थी
पर जब अब कहीं भी सुनाई देती है
तो नवोदय फिर से याद आता है।
खाना खाने के लिए मैस में जाते वक्त
थाली को उंगलियों पर घुमाना,
थाली हाथ में लेकर चलते चलते खाना, खाना
फिर से याद आता है।
दोस्तों के साथ खेलना, पढ़ना, मस्ती, मजाक
बिना इजा़जत के बाज़ार जाना
मैस से रोटीयाँ चुराना
फिर से याद आता है।
जब तक थे नवोदय में
तब वो जेल की तरह लगता था
पर अब उससे निकल चुके है तो
उसमें गुजारा हर एक दिन
फिर से याद आता है।
सच तो यह है यारों
नवोदय एक परिवार है, जीता जागता स्वर्ग है
उसमें बिताए हर एक पल
एक परिवार का एहसास दिलाते है
सच में, नवोदय फिर से याद आता है।
~Dk Megh..
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