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गाँव जैसी बात शहर में कहाँ!
जहाँ पक्षियों के चहकने,
पशुओं के बंधी घंटियों एवं
पैरों की खनखनाहट सुनाई देती हो।
अपना गाँव...
जहाँ किसान खेत पर जाते हुए
पशुओं को चराते हुए
कड़कडाती ठंड में फसल में पानी देते हुए
औरतें कंडे बनाती हुई नज़र आती हो।
भले ही शहरों में रौनक हो
पर अपनापन नज़र आता नहीं
भले ही शहरों में सुख सुविधाएं हो
पर गाँव जैसा सुकून नहीं।
शहरों में मकान नंबर से पहचाने जाते है
पर गाँव में पिता के नाम से जाने जाते है
शहर की तो हवा में भी मिलावट है
पर गाँव में ताजा हवा की आहट है।
शहर की जिंदगी में भरी है भाग दौड़
गर जिंदगी को सुकून से जीना है
तो गाँव से बेहतर कोई विकल्प नहीं
जिंदगी काटने के लिए तो शहर काफी है।
~Dk Megh..
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