उफ़क's image

चलो, उफ़क के पार चल कर देखते हैं,

बस ज़हनी ही नहीं दिलों में भी सरहदें पार कर के देखते हैं |


ओ मेरे फ़िरदौस,

कई बरस हुए मेरे ख़त का जवाब आये,

कभी तो आओ ना तुम मेरे (tasavvur ke) सपनों से बाहर,

कुछ पल याकयक हक़ीक़त को साथ बयां करके देखते हैं |


गाँव के मिटटी के मकान में दरारें पड़ गईं हैं,  

क्या तुम आओगे इन नासूर ज़ख्मों पर मोहोब्बत का मरहम लगाने,

आओ ना, उफ़क के पार चल कर देखते हैं


फ़िरदौस, 

माना की इश्क़ हमारा ना मुक्कमल ही सही,

मोहब्बत फिर एक बार सादगी से कर के देखते हैं,


धरती के इस पार नहीं समझ सकती दुनिया

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