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ख़ामोशिया ज़्यादा तब चुभने लगी
जब दूरीयो ने बसेरा किया
छिपते रहे रोज़मर्रा के शोर में
ये रिश्तों के सन्नाटे
तुम चाय बनाती रही
मैं अखबार पढ़ता रहा
तुम पड़ोसियों से जी बहलाती रही
मैं दोस्तों के साथ बतियाता रहा
साथ रहकर भी खैर कहा कुछ खास बाते की
जब दूरियों ने बसेरा किया
ख़ामोशिया ज़्यादा तब चुभने लगी
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