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प्रेम पत्र

dhruv patairiyadhruv patairiya January 4, 2022
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किसी पुस्तक में पढ़ा था कि हम सब नदी के द्वीप हैं, द्वीप से द्वीप तक सेतु है जो जोड़ता है द्वीपों को। वो रौंदा जाता है हमारे पैरों के द्वारा फिर भी संलग्न रहता है द्वीप से द्वीप को जोड़ने के कार्य में। वो जोड़ता उन द्वीपों को भी जिनकी प्रकृति अलग होती है, जिनके स्वाभाव अलग होते हैं,
जिनके परिवेश भी अलग होते हैं। फिर भी वे जुड़े रहते हैं उस सेतु के द्वारा
                   हमारी प्रकृति भी बिल्कुल विपरीत है; तुम जीवन हो,तुम प्राण हो, तुम वर्षावन हो जो प्रदान करता है-जीवन, तुम अंतरिक्ष हो जो समाहित किए हुए है असंख्य तारे जो प्रकाशित करते हैं उनको जो हारे हुए होते हैं या थके हुए होते हैं वे प्रदान करते हैं शांति, सहजता । इसके विपरीत मैं मरूभूमि हूं। जिसमे केवल और केवल समाहित है- शुष्कता, उष्णता और व्याकुलता जो अंत करती है इच्छाओं का, जीवन का और प्रेम का।। परंतु अब नहीं, तुम्हें देखने के बाद बिल्कुल नहीं क्योंकि उन तमाम थके हुए हारे हुए में एक मैं भी हूं जिसको प्रदान की है तुमने शांति सहजता
    अंत में मुझे लारेंस की कविता A Manifesto की एक पंक्ति ध्यान में आती है -
     A woman has given me strength and influence - admitted.
तुमने ही मुझे उस निराशावादी जीवन से मुक्ति देकर सहजता प्रदान की और तुम्हारे दिए इस उपहार का मैं अपने जीवन के अंतिम क्षण तक कृतज्ञ रहूंगा।।

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