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याद आते हैं

DhirawatDhirawat March 15, 2022
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वह दिन,
वह घन्टे,
वह लम्हे,
बरबस याद आते हैं।

वह तुम्हें छत की मुंडेर पर ताकना,
किताब की ओट से चुपके से झांकना,
यूं लगता था कि वक्त चलते-चलते थम जाए,
और हम उसी लम्हे में बहते-बहते जम जाएँ।
वह छत, 
वह मुंडेर, 
वह किताब,
बरबस याद आते हैं।

कभी हाथ छू जाए तो दौड़ एक सिहरन जाती थी,
रोज़ाना किसी बहाने से इक बार तो दिख जाती थी।
वह शर्माते हुए देखना और देख कर फिर से शर्माना,
वह आहिस्ता-आहिस्ता सरक कर मेरे पास आ जाना।
वह सिहरन, 
वह शर्माना,
पास आना,
बरबस याद आते

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