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थोड़ा नंगे पैर चलें,
कुछ दूरी समेट कर।
गीले कुछ कदम धरें,
ओस में लपेट कर।
लघु सरसों पुष्प पीत,
वसंत हो सुखद प्रतीत।
हरी दूब पर है ओस,
मोती से बिखेर कर।
गीले कुछ कदम धरें,
ओस में लपेट कर।
ग्रीष्म की सुहानी रात,
ज्योत्स्ना शीतल प्रपात।
रातरानी खिलखिलाती,
मादकता महकाती।
यह प्रवात,
कर प्रवास,
श्याम मेघ लेने चले,
वायु के वेग पर।
उड़ती पवन गाती चले,
गति अतिरेक पर।
प्रकृति का रूप निखरे,
वर्षा के बाण चलते।
अमृत की बूंदें बिखरे,
धूसर को प्राण मिलते।
आस धर,
प्रहार कर,
पृथ्वी को तर करें,
मेघों को भेद कर।
भीगे कुछ कदम धरें,
बूंदों में लपेट कर।
शरद में दिवस घटते,
प्रहर यामिनी के बढ़ते।
खेत हरित लहलहाते,
भ्रमर श्याम गुनगुनाते।
हो निर्मल,
हर निर्झर।
कुमुदिनी के फूल खिले,
सरोवर की सेज पर।
पुष्प हरसिंगार सजे,
कामिनी के केश पर।
हल्की गुनगुनी सी धूप,
चमके प्रकृति का रूप।
हेमंत में तीखा तुषार,
प्रेयसी का मीठा प्यार,
प्रेम रजे,
सृष्टि रचे।
दीपमाला की कतारें
तिमिर को समेट कर।
निशि शीत दूर रखें,
लोई को लपेट कर।
यह शिशिर की धूप मीठी,
ठिठुरन को दूर करती।
कोयले की ये अंगीठी,
जिस पे ठंडी रात तपती।
आग सजे,
राग बजे,
उंगलियां जो छेड़ करें,
बांसुरी के छिद्रों पर।
सीली सर्दी दूर करें,
कोयले कुरेद कर।
कुछ ऋतुएं और चलें,
वर्षों को सहेज कर।
कुछ कदम और धरें,
प्रकृति की सेज पर।
कुछ दूरी समेट कर।
गीले कुछ कदम धरें,
ओस में लपेट कर।
लघु सरसों पुष्प पीत,
वसंत हो सुखद प्रतीत।
हरी दूब पर है ओस,
मोती से बिखेर कर।
गीले कुछ कदम धरें,
ओस में लपेट कर।
ग्रीष्म की सुहानी रात,
ज्योत्स्ना शीतल प्रपात।
रातरानी खिलखिलाती,
मादकता महकाती।
यह प्रवात,
कर प्रवास,
श्याम मेघ लेने चले,
वायु के वेग पर।
उड़ती पवन गाती चले,
गति अतिरेक पर।
प्रकृति का रूप निखरे,
वर्षा के बाण चलते।
अमृत की बूंदें बिखरे,
धूसर को प्राण मिलते।
आस धर,
प्रहार कर,
पृथ्वी को तर करें,
मेघों को भेद कर।
भीगे कुछ कदम धरें,
बूंदों में लपेट कर।
शरद में दिवस घटते,
प्रहर यामिनी के बढ़ते।
खेत हरित लहलहाते,
भ्रमर श्याम गुनगुनाते।
हो निर्मल,
हर निर्झर।
कुमुदिनी के फूल खिले,
सरोवर की सेज पर।
पुष्प हरसिंगार सजे,
कामिनी के केश पर।
हल्की गुनगुनी सी धूप,
चमके प्रकृति का रूप।
हेमंत में तीखा तुषार,
प्रेयसी का मीठा प्यार,
प्रेम रजे,
सृष्टि रचे।
दीपमाला की कतारें
तिमिर को समेट कर।
निशि शीत दूर रखें,
लोई को लपेट कर।
यह शिशिर की धूप मीठी,
ठिठुरन को दूर करती।
कोयले की ये अंगीठी,
जिस पे ठंडी रात तपती।
आग सजे,
राग बजे,
उंगलियां जो छेड़ करें,
बांसुरी के छिद्रों पर।
सीली सर्दी दूर करें,
कोयले कुरेद कर।
कुछ ऋतुएं और चलें,
वर्षों को सहेज कर।
कुछ कदम और धरें,
प्रकृति की सेज पर।
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