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महारुद्र के तुम त्रिशूल,
अरि ह्रदय में धँसे शूल।
धधके रक्तिम नेत्रों में ज्वाला,
छीनें यम के मुख से निवाला।
कर पार्थ तुम रिपु दमन,
रणक्षेत्र का करो शमन।
गांडीव की कर टंकार,
शत्रु दल में हाहाकार।
छोड़ो आज रुदन और क्रंदन,
तोड़ दो आज मोह के बंधन।
त्यागो आत्म मंथन स्वरचित,
करो क्षीर-मंथन, क्षत्रियोचित।
संग्राम कदापि नहीं सरल,
हो नीलकंठ करो ग्रहण गरल।
उठो, करो तुम वज्र प्रहार,
प्रतिद्वंदी करें सब चित्कार।
गांडीव की कर टंकार,
शत्रु दल में हाहाकार।
महारुद्र के तुम त्रिशूल,
अरि ह्रदय में धँसे शूल।
किंकर्तव्यविमूढ़ ना हो,
अराति प्राणज्योति हर लो।
उत्तरदायित्व से
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