
कोई नहीं आता है नज़र,
इक तुम से मिलने के बाद।
बेख़ुद से रहते हैंअक्सर,
इक तुम से मिलने के बाद।
इश्क मेरा लाता है असर,
इक तुम से मिलने के बाद।
अग्यार भी मिलते अपने से,
अफ़साने सच्चे, सपने से।
पर फ़िक्र-ए-जुदाई भी तो है,
अफ़सोस-ए-तन्हाई भी तो है।
अलहदा कैसे होगी गुज़र,
इक तुम से मिलने के बाद।
इश्क मेरा हो जाये अज़ल
इक तुम से मिलने के बाद।
अग़लात मेरे सब देखा कीए,
अदीब जो हैं वो हॅंसते रहे।
पर अर्श-ओ-अबद तक इश्क जिये,
और अज़ीम इश्क हम कहते रहे।
अमलन अऱ्ज हुए सच मेरे,
इक तुम से मिलने के बाद।
जज़्बात मेरे जाते हैं उबल,
इक तुम से मिलने के बाद।
चाहत का अस्बाब ना पूछो,
अब्तर इश्क रहे तो क्या।
अश्कों की औकात ना पूछो,
अब्सार से आब बहे तो क्या।
आब में भी खिलते हैं कमल,
इक तुम से मिलने के बाद।
अल्फ़ाज़ मेरे हो जाएँ अमर,
इक तुम से मिलने के बाद।
आगाज़ से ले आक़ीबत तक,
सोहबत तेरी चाहेंगे हम।
आरज़ू से ले आज़माइश तक,
इख्लास तेरा आज़मायेंगे हम।
कहती है तरन्नुम मेरी कलम,
इक तुम से मिलने के बाद।
एहसास मेरे बनते हैं ग़ज़ल,
इक तुम से मिलने के बाद।
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