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पानी का छोर दिख नहीं रहा
तो मान लिया जाए
कि मैं समुद्र को देख रहा हूँ तालाब में
अगर मैं समुद्र पर पैर रखकर खड़ा हो जाऊं
तो ज़ाहिर है की सूरज को नीचे से छू लूँगा
शायद, वह मेरी हथेली पर आ जाए
अभी अभी जो नाव गुजरी है
उसने ठहराव को झुठला दिया है समुद्र के
जो अब मेरी धरती है
फिर भी, बेहिचक खड़ा रहूँगा
धरती पर
इस तरह दो पहचान एक में तब्दील हो जाएंगी
शाम का ओझल होना अच्छा लगता है
सपने का नहीं
फिर भी मैं सूरज को ढलते देखता हूँ
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