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तेरा न बोलना बहुत देर तक खलेगा
एक न एक दिन तेरा घर भी जलेगा
नज़र बंद हो अपनी बोई नफरतों में
फिर रहीम और कबीर कहाँ मिलेगा
चाँद को चुराके रात को दोष देते हो
इंतज़ार करो, आसमाँ भी पिघलेगा
जाति, धरम, नाम सबसे तो खेल लिया
अब कैसे कृष्ण, कैसे राम निकलेगा
पानी, हवा, मिटटी सब तो बँट गए हैं
किस आँगन में अब गुलाब खिलेगा
सब को बदल दिया खुद को छोड़के
सच को झूठ से और कितना बदलेगा
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