
कोख से लेकर कब्र तक
छल से सजी दुनिया के बाजार में
कितना कठिन है औरत होना !!
पांव में पायल ही नहीं
गले में फांसी का फंदा भी
तुम्हारी खाप पंचायतें
करती रहती हैं
सांसों पर पहरेदारी
'लड़कियां तो लकड़ियां होती हैं
जो चूल्हे में लगाने के लिए बनी हैं'
कब तक ढोएंगे इन मुहावरों को
लड़ो-भिड़ो तुम
और गालियां हमारे नाम से !
बहन का भाई 'साला' से लेकर
मां के नाम की राष्ट्रीय गाली तक,
विजय का हर झंडा
औरत की कोख में क्यूं गाड़ना चाहते हो
तुम बांचते रहे पुरानी पोथियां
बंधक बनाते रहे हमारी जिंदगी
ख्वाब से लेकर सिसकियों तक
टांग दिया आले में
लाल कपड़े से बांधकर।
सताता रहता है तुम्हें डर
कि लड़कियां पढ़ेंगी
तो बना लेंगी गुलाम
विश्वास करो
ये सब बकवास है,
तुम कर सकते हो या नहीं
पर हमें प्रेम करना आता है
हम साथ जीना चाहते हैं
साथी की तरह,
हम बसाना चाहते हैं ऐसी दुनिया
जिसमें कोई बड़ा कोई छोटा नहीं हो
जिसमें कोई ऊंचा कोई नीचा न हो
जिसमें सब की हो बराबर की हिस्सेदारी
और बराबर की जिम्मेदारी भी
वैसे तो हर एक की बराबर है यह दुनिया
उनकी भी जिनको 'बराबर' बोलना,सुनना नहीं आता
जो लिख नहीं सकते 'बराबर'
जिनके पुरखे घोड़ों की तरह रथों में जोते गए
इस पर भी उन्हें नहीं मिला भात बराबर
हम औरतों में से
किसी को ऐसा मर्द पसंद है
किसी को वैसा
पर झुट्ठा तो किसी को पसंद नहीं
इसलिए बाबू सुनो,
ये झूठ बोलना तो बंद कर दो।
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