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स्वर्ग में एक डाकघर होता तो
संदेशा लिख कर भेजता रोज
सब लेता मैं खबर वहाँ की
मम्मी पापा के बारे में सोच
खत लिखता मम्मी पापा को
दे कर उनको ही मैं दोष
क्या जल्दी थी इतनी जाने की
क्यों गए तुम मुझको छोड़
स्मरण कर तुम्हारे प्रेम को
उड़ा देता मैं अपने होश
तस्वीर निहारूँ तुम दोनों की
काश मैं भी होता वहाँ ये सोच
पास में पाता तुम दोनों को
बेशक झेलता तुम्हारा रोष
कमी है अभी तुम्हारे प्यार की
काश मैं मिलने आ पाता रोज
स्वर्ग में एक डाकघर होता तो
तुमको लिखता खत मैं रोज
ईश्वर के आगे चली है किस की
यही रह जाता हूं अक्सर सोच
..............................................
देवेश दीक्षित
संदेशा लिख कर भेजता रोज
सब लेता मैं खबर वहाँ की
मम्मी पापा के बारे में सोच
खत लिखता मम्मी पापा को
दे कर उनको ही मैं दोष
क्या जल्दी थी इतनी जाने की
क्यों गए तुम मुझको छोड़
स्मरण कर तुम्हारे प्रेम को
उड़ा देता मैं अपने होश
तस्वीर निहारूँ तुम दोनों की
काश मैं भी होता वहाँ ये सोच
पास में पाता तुम दोनों को
बेशक झेलता तुम्हारा रोष
कमी है अभी तुम्हारे प्यार की
काश मैं मिलने आ पाता रोज
स्वर्ग में एक डाकघर होता तो
तुमको लिखता खत मैं रोज
ईश्वर के आगे चली है किस की
यही रह जाता हूं अक्सर सोच
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देवेश दीक्षित
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