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उसका जाना नहीं खलता अब मुझे,
हवा जरूरी है लौ जलने के लिए।
शिकायत अपनों से होती है परायो से नहीं,
वफा जरूरी है बे-वफा होने के लिए।
फना की रूह तब हुआ इस काबिल,
ज़िक्र हुए बिना दर्द समझने के लिए।
वो चाहें तो ढूंढ लें इलाज मेरा,
पर मर्ज़ ज़रूरी है मर्ज़ समझने के लिए।
यूं कश्ती के सहारे नही गुज़ारी जाती जिंदगी,
किनारा जरूरी है बसर करने के लिए।
वो जहन मेें उतरी है किसी शाम की तरह,
भूलना जरूरी है याद करने के लिए।
शायरी लिखते नहीं लिख जाती हैं,
एक शख्स चाहिए लफ्ज़ जीने के लिए।
शायर बनते नहीं , बन जाते हैं;
एक उम्र लगती है चंद लिखने के लिए।
जो कहते हैं चाहत पाक नहीं मेरी ,
'जॉन एलिया' चाहिए इश्क समझने के लिए।
-devanshu sharma
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