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मैं सुगम दृश्यमान हिन्दी भाषा,
दु:साध्य उर्दू जैसे तुम।।
मैं साधारण सी विचरती धरती पर,
आसमां में चाँद जैसे तुम।।
मैं अव्युत्पन्न सी पंक्तियाँ,
मंजुल परिपक्व कविता जैसे तुम।।
मैं अज्ञात अपरिचित सी तुम्हारे लिए,
मेरी सारी लेखनी का आधार जैसे तुम।।
मैं तट पर आती-जाती लहरों सी,
साग़र की गहराई जैसे तुम।।
मैं जीवन में तुम्हारे निरर्थक सी,
मेरे हृदय में प्रेम की परिभाषा जैसे तुम।।
-Deepikaagarwal_mridul
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