बाँझ's image
Share0 Bookmarks 82 Reads1 Likes

आज बेटी को विद्यालय से घर लाने मुझे जाना पड़ा,ड्राइवर का फोन आया था ऑटो ख़राब हो गया था। 

विद्यालय परिसर में भीड़ पहले से काफ़ी थी। उसी भीड़ में एक स्त्री बहोत झिझक के साथ लगातार मुझे देख रही थी और बाकी स्त्रियाँ उसे।

बेटी ने मुझे देखते ही दूर से आवाज़ दी, " मम्मा " और मुझे खींचते हुए उसी स्त्री के पास ले गई, वों अपनी भतीजी को लेने आयी थी। बेटी फौरन बोली, " मम्मी, इनसे मिलो,ये ज्योति आंटी हैं, जिनके बारे में मैं हमेशा बताती हूं "। 

हमने कुछ देर बातें की पर उनकी झिझक अभी भी बनी हुयी थी। जाते हुए बोली, " बहोत प्यारी बच्ची है आपकी और आपसे मिलकर भी बहोत अच्छा लगा " ।

मैंने भी मुस्कुरा दिया।

तभी एक और बच्ची की माँ लगभग हांफते हुए मेरे पास आयी और बोली," थैंक गॉड ,आप यहाँ मिल गई, कुछ बात करनी थी।

आजकल आपकी बेटी ज्योति से बहोत ज़्यादा घुल मिल गई है, इस तरह बच्ची का ऐसी स्त्री से बात करना ठीक नहीं । देखिए, हमारी भी बेटी है इसलिए अपना समझ के बता रही, वो "बाँझ " है। आप समझ रही हैं ना।

मैं स्तब्ध, निःशब्द खड़ी उन्हें सुन रही थी। ये एक विद्यालय की प्रिन्सिपल के शब्द थे जो स्वयं नारीवाद का झंडा लिए नारी उत्थान और उनके अधिकारों के लिए कार्य करती हैं।

मैं सोचने लगी आख़िर क्या "ठीक नहीं "है। एक स्त्री का वो होना जिसमें उसका कोई दोष या योगदान नहीं है या एक बच्ची का एक माँ तुल्य स्त्री से घुलना मिलना या एक स्त्री का स्वयं एक स्त्री द्वारा "बाँझ " कहे जाना।

-Deepikaagarwal_mridul

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts