तरूण आकर्षण's image
Share0 Bookmarks 21 Reads0 Likes

यूं विषम समय तुम झलक दिखा, तन में सिहरन भर जाते हो

हमें समय-2 विचलित करके, तुम पता नहीं क्या पाते हो I


मैं कितना बेचारा हूं, उस विचलन में दब जाता हूं

सत्य कथन है नहीं है वो पल, तुमसे बिछड़ जब जाता हूं I


इक सतत श्रंखला थी जीवन में, अब शून्य उभर सा आया है

इस रिक्त स्थान की पूर्ति का,व्यंजक बस तुममें पाया है I


वो व्यंजक मुझको तुम दे दो, कितना अद्भुत एहसास जगे

फिर मृत्युलोक के ग़मों में भ, आनंद का अनुभव खास लगे I


एक बहुत ही शक्तिशाली चुम्बक, जुड़ा तुम्हारी काया से

मैं देव नहीं जो हो ना सकुं, आकर्षित इस माया से I


माया-चुंबक की काया के, अंश-अंश में सम्मोहन है

इसका ही तो परिणामी, उन वेदित भाव का दोहन है I


इस दोहन को ना रोक सकुं, यही मेरी विवशता है

बस तू मेरा हमराही बन जा, एक लक्ष्य अब दिसता है I

                  

               दीपक शर्मा

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts