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कविता- शायद उनको नाम मिले...
नादान हूं क्या नाम दूं, उन भावनाओं को
जूडी हुई जो तुमसे
उत्पन्न हो ले ले हिलोर
सिहराती तन को
सिहरन का आभास दे
भटकाती मन को
उस भटकन के आगोश में लिपटा हुआ शरीर
उन लहरों के प्रभाव में
अनंत तक बहता हुआ
मंज़िल की तलाश में
थपेडे सहता हुआ
कहीं खो जाता है
चाह में की
शायद उनको नाम मिले
दीपक शर्मा
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