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मैं खाकी हूं
आंखों में सपने मैं भी पालती हूं
मेरा भी घर आंगन है
उसमें आखें राह मेरी भी ताकती हैं
कर्तव्य पथ पर आगे निकलती हूं
किंचित भय में ना जीती हूं
ना जाने कितने अनजान चेहरों से
मैं परिचित होती हूं
मैं खाकी हूं
आंखों में सपने मैं भी पालती हूं
बिना रिश्तो के, बिना पहचान के
ना जाने कितनों का मैं कंधा हूं
कितने दिलो
आंखों में सपने मैं भी पालती हूं
मेरा भी घर आंगन है
उसमें आखें राह मेरी भी ताकती हैं
कर्तव्य पथ पर आगे निकलती हूं
किंचित भय में ना जीती हूं
ना जाने कितने अनजान चेहरों से
मैं परिचित होती हूं
मैं खाकी हूं
आंखों में सपने मैं भी पालती हूं
बिना रिश्तो के, बिना पहचान के
ना जाने कितनों का मैं कंधा हूं
कितने दिलो
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