
"नई वाली हिंदी" यह शब्द पिछले कुछ सालों में ज्यादा प्रचलन में आया है। यह सिर्फ़ कहने को नई वाली हिंदी है इसमें कुछ भी नया नहीं है। क्योंकि "नई वाली हिंदी" का लेखन आम बोल-चाल की भाषा पर आधारित है जो कि हमारे समाज में पहले से ही व्याप्त है। हाँ लेखन की दृष्टि से इस में परिवर्तन आया है जो कि स्वाभाविक है। "नई वाली हिंदी" की जब शुरुआत हुई थी तो हमारे पारंपरिक हिंदी (पुरानी वाली हिन्दी) के लेखकों ने इसे 'फूहड़पन' कहा था। लेकिन यह धीरे-धीरे आम-जन को पसंद आने लगी। क्योंकि यह उन्हीं के बोल-चाल की भाषा में थी।
"नई वाली हिंदी" से कई क्षेत्रों जैसे- महिला लेखन, आदिवासी लेखन को भी गति मिली है जो कि हिंदी साहित्य के विकास के लिए अच्छा संकेत है। आज के दौर में 'नई वाली हिंदी' के कई सारे बेहतरीन लेखक-लेखिका हैं। जिनकी किताबें बेस्टसेलर रही हैं। उनमें कुछ लेखकों की रचनाएं मैंने भी पड़ी हैं। कुछ अंश उन रचनाओं के जो "नई वाली हिंदी" को दर्शाते हैं।
नीलोत्पल मृणाल की "डार्क हॉर्स" से रायसाहब और संतोष के मध्य संवाद -
"चलिए रूम पर चलते हैं।" रायसाहब ने हाथ से इशारा करते हुए कहा।
"हाँ चलिए, देखे आपका महल।" संतोष ने भरे उत्साह से कहा।
"महल नहीं कुटिया कहिए। तपस्या करना होता है।" रायसाहब ने मुस्कुराते हुए कहा।
"कहाँ रूम है आपका ?। संतोष ने पूछा
"बस यहीं 5 मिनट में नेहरू विहार में है। चलिए ना पैदल ही पहुंच जाएंगे।" राय साहब ने कदम बढ़ाते हुए कहा
नीलोत्पल मृणाल के ही "औघड़" से जिनके अंतिम हिस्से का संवाद -
आवाज सुनकर सबसे पहले पुरुषोत्तम सिंह हड़बड़ाकर जागे“अरे क्या हुआ ? अरे हुआ क्या ? , काहें चिल्लाए हैं ?” पुरुषोत्तम सिंह ने अपने कमरे से बाहर आकर पूछा।
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