
टूट कर गिर जाती बात कोई
गले से मेरे
डूबने लगती गहराइयों में मेरी
टूटता तारा कोई
डूब जाता
देख न पाती आँखें
अँधेरे में डूब रहे अँधेरे तारे को
अँधेरी आकाशीय गहराईयों में
डूबती बात
खाने लगती टप्पे
अंतस्थ दीवारों पर
पैदा करती कम्पन
कि झड़ जाता पलस्तर दीवारों का
नीचे जाने कितनी ही दबी बातें
उभर आती, दीवारों की शक्ल पर
हर टप्पा
उभार देता, जाने कितनी ही शक्लें
अंदर मेरे शोर मचाती शक्लें
धीरे-धीरे पैदा करती
हाथ, धड़, पाँव
जाने कितने मैं पैदा हो जाते
घूमने लगते गहराईयों में मेरी
टकराने लगते आपस में
फिर कहीं से कोई हत्यारा मैं
उनके बीच आता
एक चमकता खंजर लिये
ये मेरा खंजर नहीं
किसी ने थमाया, हाथों में उसके
सजाने भय को
एक-एक कर वो
कर देता हत्या जाने कितने मैं की
बिखर जाते कांच के टुकड़ों की तरह
सारे मैं
भयानक हंसी हंसता हत्यारा मैं
कहीं दीवारों की ओट में छिपा मैं
बच गया जो हत्यारे मैं से
सहम कर देखता भय का खंजर
बिखरे हुए मैं के टुकड़ों से
घायल होते उसके पाँव
रक्त बहता, पीड़ा देता
अनायास ही निकल जाती चीख मैं की
खाती हुई टप्पे
चली आती, गले तक मेरे
तोड़ देती फिर कोई बात
गिरेगी जो टूटकर मेरे भीतर
पैदा करेगी कई शक्लें फिर से
छीनेंगी खंजर हत्यारे मैं से
आयेंगी निकल बाहर
खड़ी होंगी सामने लिए खंजर
खंजर थमाने वाले हाथों के
शोर मचेगा बाहर
होगा टकराव
उसी शोर से अलग ख़ामोशी में
चलाये जायेंगे खंजर
मेरे गले पर
निकलेंगी बातें बाहर
टूटकर, बहकर रक्त से मेरे
रोयेंगी मेरी मौत पर
जब तक मिल नहीं जाता उन्हें
कोई गला
जिसमें वे फिर से टूट सके ll
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