टूटती कोई बात's image
Share0 Bookmarks 213621 Reads0 Likes



टूट कर गिर जाती बात कोई 

गले से मेरे 

डूबने लगती गहराइयों में मेरी 

टूटता तारा कोई 

डूब जाता   

देख न पाती आँखें 

अँधेरे में डूब रहे अँधेरे तारे को  

अँधेरी आकाशीय गहराईयों में 

डूबती बात 

खाने लगती टप्पे

अंतस्थ दीवारों पर

पैदा करती कम्पन 

कि झड़ जाता पलस्तर दीवारों का 

नीचे जाने कितनी ही दबी बातें 

उभर आती, दीवारों की शक्ल पर 

हर टप्पा 

उभार देता, जाने कितनी ही शक्लें 

अंदर मेरे शोर मचाती शक्लें 

धीरे-धीरे पैदा करती 

हाथ, धड़, पाँव 

जाने कितने मैं पैदा हो जाते  

घूमने लगते गहराईयों में मेरी 

टकराने लगते आपस में 

फिर कहीं से कोई हत्यारा मैं 

उनके बीच आता 

एक चमकता खंजर लिये 

ये मेरा खंजर नहीं 

किसी ने थमाया, हाथों में उसके 

सजाने भय को 

एक-एक कर वो 

कर देता हत्या जाने कितने मैं की

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts