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कुछ लिखता हूँ
हर बार
कुछ लिखता हूँ
अपने बारे में
भिन्नी सी स्याही लेकर
भावनाओं को
जीवन के अनुभवों को
सोंधी सी हँसी को
दुःखों के पहाड़ को
गर्जना करती शाम को
फिर एक नये सवेरे को
छोटे को बड़े को
पथ को और पथिक को
कुछ लिखता हूँ
अपने आप को
.
.
.
-सुरेन्द्र पंचारिया
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