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कभी हक़ीक़त के बाब रखो।
कभी निगाहों में ख्वाब रखो।
ज़मीं के बंदे बनो तो बेहतर।
क़दम ज़मीं पे जनाब रखो।
किताब पढ़ना भी ठीक है पर।
कभी तो इनमें गुलाब रखो।
ज़रा निगाहों को भी पढ़ो अब।
चलो उठाओ किताब रखो।
हम अहले दानिश को कब ज़रूरत।
के पास कोई ख़िताब रखो
.
दानिश मुहम्मद खान।
Kabhi haqeeqat ke baab rak
कभी निगाहों में ख्वाब रखो।
ज़मीं के बंदे बनो तो बेहतर।
क़दम ज़मीं पे जनाब रखो।
किताब पढ़ना भी ठीक है पर।
कभी तो इनमें गुलाब रखो।
ज़रा निगाहों को भी पढ़ो अब।
चलो उठाओ किताब रखो।
हम अहले दानिश को कब ज़रूरत।
के पास कोई ख़िताब रखो
.
दानिश मुहम्मद खान।
Kabhi haqeeqat ke baab rak
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