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जुलम सहते जा रहे हो और जुबां भी ना खोल पा रहे हो
मर चुके हो अंदर से बस जिंदा दिखने के लिए जिए जा रहे हो!
हर बार ही ऐसा होता है, एक लुटेरा जाता है दुसरा लुटने आता है
वादों का सफ़ेद लिबास पेहन कर भावनाओ का शतरंज बिछाता है
जिंदगी ये कैसी जिये जा रहे हो, कपड़ा वही पुराना बार-2 सीए जा रहे हो!
मर चुके हो अंदर से बस जिंदा दिखने के लिए जिए जा रहे हो !
भूल कर फ़र्ज़ अपने, पहचान तुम्हारी बताने में लगे हैं
धरम ,जात और नसल का देकर वास्ता, एक दूजे से लड़ाने में लगे है
जैसा चाहते थे वो, तुम ठीक वैसा किए जा रहे हो
पकड़ कर मुद्दे झूठ के असल से गुमरा हुए जा रहे हो!
मर चुके हो अंदर से बस जिंदा दिखने के लिए जिए जा
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