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पानी न बचा नयनों में , दिल पूरा खाली है।
बिखरा बिखरा सा जहां , अंग अंग सवाली है।
मुदंतें गुजर गई कितनी, अधूरी सी अभी कहानी है।
सुखी नदी के ऊपर जैसे सूरज तपता है।
कुछ ऐसे ही अपना रात और दिन गुजरता है।
दरखत वो किनारे का , कलियों की उम्मीद में डाली डाली है।
मुदंतें गुजर गई कितनी, अधूरी सी अभी कहानी है।
" D.S. Nagra "
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