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घर की आबरू, परिवार का मान कहकर चार दिवारी में कैद कर दिया,
आवाज़ जो उठी कभी तो दो थप्पड़ लगाकर खामोश कर दिया,
अरे भगवान बनने की चाह तो उसे भी ना थी कभी, कम से कम इन्सान ही समझ लिया होता,
पर हमने तो उसी को लताड़ा घर में जानवरों की तरह, और समाज के आगे देवी बना दिया।।।
\\चंचल\\
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