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*उसकी आंखे*
जाने ऐसा क्या था उसमें, आंखे हम चार कर बैठे,
एक नज़र देखा उसने, हम ही खुद को हार बैठे।
वो इश्क की अद्भुत परिभाषा सी,
एक झलक देखने की अभिलाषा सी,
खुद से ही अनजान सी,
सुंदर सी, नादान सी,
जाने ऐसा क्या था उसमें, आंखे हम चार कर बैठे,
एक नज़र देखा उसने, हम ही खुद को हार बैठे।
हरि की मुक्ताहार सी,
कविता की आभार सी,
आंखे तो बस संसार ही,
गुलशन की गुलजार सी,
जाने क्या था, उस चेहरे में
जाने ऐसा क्या था उसमें, आंखे हम चार कर बैठे,
एक नज़र देखा उसने, हम ही खुद को हार बैठे।
वो इश्क की अद्भुत परिभाषा सी,
एक झलक देखने की अभिलाषा सी,
खुद से ही अनजान सी,
सुंदर सी, नादान सी,
जाने ऐसा क्या था उसमें, आंखे हम चार कर बैठे,
एक नज़र देखा उसने, हम ही खुद को हार बैठे।
हरि की मुक्ताहार सी,
कविता की आभार सी,
आंखे तो बस संसार ही,
गुलशन की गुलजार सी,
जाने क्या था, उस चेहरे में
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