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न मन्ज़िल हैं कोईं ना कोई कारवां
ब़ढ़े चले ज़ा रहे है, रुकेगे कहां !
कुछ़ पल ब़चा लो अपनों के लिए
जो देख़ोगे पलट कें, ये मिलेगे कहां
वक़्त क़ा तकाजा क़हता हैं यहीं
ज
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न मन्ज़िल हैं कोईं ना कोई कारवां
ब़ढ़े चले ज़ा रहे है, रुकेगे कहां !
कुछ़ पल ब़चा लो अपनों के लिए
जो देख़ोगे पलट कें, ये मिलेगे कहां
वक़्त क़ा तकाजा क़हता हैं यहीं
ज
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