
Share0 Bookmarks 55 Reads0 Likes
दे दे तू मुझ इक रुपैय्या
कुछ खा लूंगा,कुछ दे दूंगा
भटक रहा हु ,मैं दिन भर।
वो बोलेगा क्या लाया
बोलूंगा मैं, इक रुपैया
सड़क छाप कहलाकर के मैं
भटक रहा हु ,मैं दिन भर|
फैला करके,अंग अंग मैं
भर आशा से देख रहा
दे दे तू मुझ इक रुपैय्या
भटक रहा हु ,मैं दिन भर |
श्वान निंद्रा बको ध्यानम् की
कर रहा धड़ पालना
बस्ती बस्ती घूम रहा मैं
भटक रहा हु ,मैं दिन भर।
अंधियारे जीवन के इसमें
"काश" मैं अपना ढूंढ रहा
दे दे तू मुझ इक रुपैय्या
भटक रहा हु,मैं दिन भर।
कष्ट निगाहे तेरी देखकर
मन उलझन में पड़ रहा
जग अपना ना पाकर के मन
फिर उलझन में पड़ रहा।
दे दे तू मुझ इक रुपैय्या
कुछ खा लूंगा,कुछ दे दूंगा
भटक रहा हु ,मैं दिन भर।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments