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पछतावा ही रह जाता है
जब बूढ़ होते मां बापो पर
आंखे झुकने की जगह
हम आंखे उठा लेते है
पछतावा ही रह जाता है
फिर उन बूढ़ी आंखों में
की क्या किसी से शिकायत कीजे
अपनी ही परवरिश है
अपनी ही गलती है
जब बूढ़ होते मां बापो पर
आंखे झुकने की जगह
हम आंखे उठा लेते है
पछतावा ही रह जाता है
फिर उन बूढ़ी आंखों में
की क्या किसी से शिकायत कीजे
अपनी ही परवरिश है
अपनी ही गलती है
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