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जो अपने हिस्से का रो चुके हैं
वो अब पत्थर हो चुके हैं,
उन् को खबर न हुई
कब वो उठ कर रकिबो में बैठ गया
उसके एहसासों में ऐसा खोई,
मुझ को खबर न हुई
जिसे इश्क समझ रही थी अब तक
वो जख्म कब रिसने लगा
मुझ को खबर न हुई
उसके झूठ बोलने के अंदाज पर मैं
अपना सच वारी कर गया,और
उस को को खबर न हुई
वो अब पत्थर हो चुके हैं,
उन् को खबर न हुई
कब वो उठ कर रकिबो में बैठ गया
उसके एहसासों में ऐसा खोई,
मुझ को खबर न हुई
जिसे इश्क समझ रही थी अब तक
वो जख्म कब रिसने लगा
मुझ को खबर न हुई
उसके झूठ बोलने के अंदाज पर मैं
अपना सच वारी कर गया,और
उस को को खबर न हुई
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