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एक खत जो मैं ज़िंदगी के नाम लिखने बैठी
तो , कभी शब्द को गए ,,,
कभी उनके मायने खो गए,,,
बस एक जख्म रह गया मेरे सीने में
और एक खंजर तेरे नाम वाला ,,,,,,
जिससे आज भी कुछ रिसता है
खून नहीं है , पानी भी नहीं है
शायद , तुम ही हो जो अब
मेरी रगों से बाहर बह रहे हो
मैं बताना चाहती थी जिंदगी को
मुझे अब भी प्यार है उससे,,,,,
पर अब शब्द नहीं मिलते हैं
बस दर्द मिलता है,,,,और
उसकी तो कोई जुबान होती ही नहीं है
तो , कभी शब्द को गए ,,,
कभी उनके मायने खो गए,,,
बस एक जख्म रह गया मेरे सीने में
और एक खंजर तेरे नाम वाला ,,,,,,
जिससे आज भी कुछ रिसता है
खून नहीं है , पानी भी नहीं है
शायद , तुम ही हो जो अब
मेरी रगों से बाहर बह रहे हो
मैं बताना चाहती थी जिंदगी को
मुझे अब भी प्यार है उससे,,,,,
पर अब शब्द नहीं मिलते हैं
बस दर्द मिलता है,,,,और
उसकी तो कोई जुबान होती ही नहीं है
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