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रात को पड़ते रहते हैं हम
चांद का चश्मा लगा कर
कभी उसे तेरे किस्से सुना कर
कभी कुछ उसकी सुन कर
यू ही काट जाता है,,,,,,,,,,,
तन्हाई का सफर
यही सोच कर नही सोते है हम
की अगर , हम जागे है यहां
तो क्या नींद उसको आयेगी वहा
रात को पड़ते रहते हैं , हर्फ दर हर्फ
चांद की पीठ पर उंगलियां घुमाकर
चांद का चश्मा लगा कर
कभी उसे तेरे किस्से सुना कर
कभी कुछ उसकी सुन कर
यू ही काट जाता है,,,,,,,,,,,
तन्हाई का सफर
यही सोच कर नही सोते है हम
की अगर , हम जागे है यहां
तो क्या नींद उसको आयेगी वहा
रात को पड़ते रहते हैं , हर्फ दर हर्फ
चांद की पीठ पर उंगलियां घुमाकर
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