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तुम भाव समझ जाना

Poetry by Charu ChauhanPoetry by Charu Chauhan January 27, 2023
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तुम भाव समझ जाना
मेरे शब्दों पर मत जाना

तुम्हारा यह कहना और 
मेरा अपलक देखते जाना। 

लेकिन अपनी लिखी पाती को जब तुम मेरे तकिये के नीचे चुपके से छिपा रहे होंगे.... हाँ, फ़िर मैं हमेशा की तरह किसी दरख़्त से तुम्हें देख रही होंगी और देख रही होंगी तुम्हारी झिलमिल आँखें, 
सुकून से तुम्हारे चेहरे की सिलवटों के पीछे की फ़िक्र को झाँकती हुई थोड़ी चिंता थोङे प्यार से तुम्हारे दाएँ हाथ के अंगूठे के नीचे दबे खत का कोना। 
वो कोना तुम हमेशा दबाये रखते हो बिल्कुल वैसे ही जैसे दबाते हो मेरे लिए अपना प्यार सीने में। ज़ाहिर भी करते हो और इंकार भी बेइंतहा। 

चलो जब तुम लौट जाओगे पाती रखकर, मैं दरख़्त के एक हिस्से का एहसास अपनी उँगलियों में दबाये दौड़ जाऊँगी, जितना दौड़ सकती हूँ उससे कहीं ज़्यादा तेज, बहुत तेज। 

तुम अक़्सर अपनों ख़तों में पंक्ति लिखते-लिखते उसे अधूरा छोड़ दिया करते हो... मैं पूरा कर लेती हूँ उन्हें अपनी कविताओं से और उसी क्षण में पूरा हो जाता है हमारा अनकहा सा संबन्ध। 
वर्णमाला के अक्षर टूट कर बिखर भी जाए, शब्द भी भूल जाएं अपनी मात्राएं, फ़र्क नहीं पड़ता कितनी बातें हुईं हमारे दरम्यां। एक-दूजे के सामने हम दोनों की ख़ामोशी ही शायद हमें सबसे अधिक पूरा करती है। 

"क्योंकि... वर्णमाला में, मैं ज़रा कच्ची हूँ
शब्दों को गुनने में, तुम भी थोड़े नादां हो।"


स्वरचित
© चारु चौहान 

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