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निकलता हूं घर से सुबह सवेरे अपनी मंजिल को पाने, मिलते हैं हजारों अनजाने लोग पर न जाने क्यों लगते हैं अपने से ? किससे बयां करूं मैं अकेलापन कितना दर्द देता है मुझे ? ढूंढता फिरता हूं उसे पागल की तरह जिसे सपनों में भी नहीं देखा मैंने।
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