
Share0 Bookmarks 211 Reads1 Likes
आदतें अजीब होती हैं,
मुझे सब बिखेरने की आदत है
और तुम्हें सहेजने की।
मैंने जब-जब बिखेरा है
कमरे का सामान,
शेल्फ़ में सजी किताबें,रसोई में जब रख दिये
चाय-चीनी, दाल-चावल के डिब्बे
इधर-उधर!
तुमने आकर पीछे से सब रख दिया
वैसा का वैसा जैसा था पहले,
यह तुम्हारी आदत थी।
आदतें अजीब होती हैं,
हज़ारों मील दूर बैठे हुए भी लेकिन,
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments