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आदतें अजीब होती हैं,
मुझे सब बिखेरने की आदत है
और तुम्हें सहेजने की।
मैंने जब-जब बिखेरा है
कमरे का सामान,
शेल्फ़ में सजी किताबें,रसोई में जब रख दिये
चाय-चीनी, दाल-चावल के डिब्बे
इधर-उधर!
तुमने आकर पीछे से सब रख दिया
वैसा का वैसा जैसा था पहले,
यह तुम्हारी आदत थी।
आदतें अजीब होती हैं,
हज़ारों मील दूर बैठे हुए भी लेकिन,
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